शोला हूँ, भड़कने की गुजारीश नहीं करता
सच मुँह से निकल जाता है, कोशिश नहीं करता
गिरती हुई दीवार का हमदर्द हूँ लेकिन
चढ़ते हुए सूरज की परस्तिश नहीं करता
माथे के पसीने की महक आये ना जिस से
वो खून मेरे जिस्म में गर्दिश नहीं करता
हमदर्दी-ए-एहबाब से डरता हूँ मुज़फ्फर
मैं जख्म तो रखता हूँ, नुमाईश नहीं करता